विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार की स्थापना हरित क्रांति की सफलता के बाद 3 मई 1971 में की गई, जो वैज्ञानिक विधियों के नवप्रवर्तक विस्तार को वर्णित किया। पिछले तैंतालिस वर्षों के दौरान, डीएसटी ने अनेक स्रोत विकसित किए जो बाद में केंद्रित लक्ष्यों के साथ विभागों और मंत्रालयों में स्थापित हुए। इनमें से कुछ है जैवप्रौद्योगिकी विभाग (DBT)] वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान विभाग (DSIR)] पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (MoEF)] नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE)] इलेक्ट्रानिक्स विभाग (DoE) और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) हैं। डीएसटी, विज्ञान क्षेत्र को सरकारी पाश्र्व से जोड़ने वाली नोडल एजेंसी के रूप में काम करती है। डीएसटी द्वारा निभायी जाने वाली भूमिकाएं अनेक हैं और ये समय के साथ विकसित हुयी। तदनुसार डीएसटी (अ) एस एंड टी नीतियां विकसित करती है, (ब) मानव संसाधन और संस्थानगत क्षमताओं को सशक्त करती है, (स) प्रौद्योगिकियों को विकसित और विस्तरित करने में सक्षम बनाती है, (द) एस एंड टी के जरिए सामाजिक हस्तक्षेप के लिए अवसरों का सृजन करती है और (य) सहयोग, भागीदारी एवं समझौते की क्रियाविधियों में प्रमाणित और नियुक्त करती है। इसके ध्येय में प्रदर्शित होने वाले ये अभिगम, एक अखंड सर्वांगी प्रभाव, तत्कालीन, मध्यम और दीर्घावधि संबद्धता/उपलब्धि सुनिश्चित करते हैं। यह विभिन्न क्षेत्रों में सतत वृद्धि/विकास के लिए प्रतिकूल तीक्ष्ण प्रभावों और समय, मानव, संस्थागत और आर्थिक संसाधनों को उपयुक्त बनाने के लिए सहक्रियाओं में सक्षम बनाते हैं।
डीएसटी ने लगातार उपयुक्त प्रतिक्रियाओं और अकसर बिना किसी भूमिका के रूपांतरित परिवर्तनों को सक्षम बनाया है। फलस्वरूप डीएसटी ने एक एक्स्ट्राम्यूरल अनुसंधान अनुदान एजेंसी की भूमिका निभायी जिसमें अनुसंधान के लिए तकनीकी योग्यता के आधार पर खोजकर्ताओं के लिए प्रतिस्पर्धात्मक वृत्ति प्रदान की। यह तंत्र लगभग तीन दशकों से प्रचलन में है। डीएसटी ने वर्षों से विश्व भर के अभिगमों में अनेक परिवर्तनों का परिज्ञान लिया और भारत की आवश्यकताओं के अनुसार अपनाने के लिए अपने तंत्रों को विकसित किया। इसके परिणामस्वरूप कुछ निर्देशात्मक परिवर्तन हुए जो अग्रसक्रिय प्रकार्य और सहभागी क्रियाओं में विकसित हुए। ये रिक्ति क्षेत्रों की अग्रसक्रिय पहचान तथा नए कार्यक्रमों एवं स्कीमों के विकास, रिक्तियों/आवश्यकताओं को संतुलित करने वाले प्रतिस्पर्धात्मक एवं विकास के निदर्शों को बताने के लिए प्रमाण आधारित अभिगमों, विज्ञान के लिए बड़े संसाधन विनियोजन के लिए समर्थन, स्टेकहोल्डर की किस्म एवं आधार के विस्तार, स्टेकहोल्डर अनुबंध के मान पर केंद्रित परस्पर क्रियाओं, विभिन्न कार्यक्रमों की आंतरिक संबद्धता, संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग और वितरण के लिए प्रभावी नियोजन और समन्वयन, स्थानीय आवश्यकताओं की गहरी जानकारी प्राप्त करने और विज्ञान के क्षेत्र में निष्पक्षता, विस्तार और उत्कृष्टता के विश्लेषण के लिए समाकलित दृष्टिकोण की तीन मूल प्राथमिकताओं में सक्रिय संतुलन स्थापित करने सहित डीएसटी के मजबूत पक्षों में स्पष्ट हैं।
डीएसटी अग्रस्थ और पश्चगामी लिंकेजों के जरिए नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं के परिणामों के विश्लेषण को सुनिश्चित करता है। मित्र देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय एस एंड टी समन्वयन, राष्ट्रीय प्राथमिकता बन गया है और यह काम डीएसटी को सौंपा गया। इस प्रकार, डीएसटी ने वैज्ञानिक अनुसंधान एवं विकास में उत्कृष्टता और नेतृत्व को प्रेरित और प्रोत्साहित करने के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तंत्र/क्रियाविधियां स्थापित कीं। ये भारत की विकासात्मक आकांक्षाओं के समकक्ष हैं और यह राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तरों पर अनेक क्षेत्रों में इसके द्वारा स्थापित कर्मता को मजबूत बनाने में सहायता करेगा।