भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है जो उच्च रक्तचाप, शिशु और मातृ कुपोषण , मधुमेह के जोखिम वाले कारकों जैसी समस्याओं से अधिक गंभीर है। कम से कम 14 करोड़ लोग डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से 10 या ज्यादा बार सांस लेते हैं। वायु प्रदूषण के उच्चतम वार्षिक स्तर वाले दुनिया के 20 शहरों में 13 शहर भारत में हैं।
वायु प्रदूषण के सामान्य स्रोत हैं – घरेलू प्रदूषण, मोटर वाहन, कारखाने और जंगल की आग। यह अस्थमा को बढ़ाने और विशेषकर बच्चों में श्वसन-संबंधी विकारों की वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। हृदयघात समेत हृदय संबंधी बीमारियों के कारण रुग्णता और मृत्युदर में वृद्धि, सांस संबंधी बीमारियों और कैंसर के लिए भी वायु प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया गया है।
वायु प्रदूषण को स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा मानते हुए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी)ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कई पहलों की शुरुआत की है। विभाग ने वायु संवर्धन और वायु शोधन इकाई (डब्ल्यूएवाईयू) उपकरण विकसित किये हैं। इन उपकरणों को सड़क के चौराहों / डिवाइडरों पर धूल प्रदूषण से निपटने के लिए तथा आसपास स्थित औद्योगिक परिसरों, आवासीय परिसरों, स्कूलों आदि में लगाया जा सकता है।
इस प्रक्रिया की अन्य तकनीकें हैं – ट्रैफिक जंक्शन वायु प्रदूषण न्यूनीकरण योजना; एकीकृत कार्य योजना के माध्यम से लैंडफिल अग्नि नियंत्रण व्यवस्था, कार की छत पर फिल्टर लगाकर सूक्ष्म कणों का संग्रह करना, वायु प्रदूषण का पता लगाने और इसे कम करने के लिए एक विद्युत – गृह, “शुद्धवायु” आदि।
वायु संवर्धन और वायुशोधन इकाई (डब्ल्यूएवाईयू)
वायु संवर्धन और वायु शोधन इकाई (डब्ल्यूएवाईयू) वायु को स्वच्छ करने की एक प्रणाली है जिसे औद्योगिक परिसरों, आवासीय परिसरों व स्कूलों में लगाया जा सकता है। सड़क यातायात तथा चौराहों / डिवाइडरों पर अधिक मात्रा में प्रदूषकों का उर्त्सजन होता है। यह उपकरण वाहनों द्वारा उर्त्सजित ऐसे प्रदूषकों को समाप्त करता है। ऐसे स्थानों पर जहाँ प्रदूषकों की सघनता अधिक है, यह उपकरण प्रदूषण को कम करता है। डब्ल्यूएवाईयू उपकरण वायुमंडल में उत्सर्जित पीएम10, पीएम2.5, कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), हवा में तैरते कार्बनिक यौगिक (वीओसी), हाइड्रोकार्बन की मात्रा को कम करने में सक्षम है।
प्रयोग के तौर पर इन उपकरणों को आईटीओ चौराहे तथा मुकरबा चौक पर लगाया है। इसका उद्घाटन केन्द्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री हर्षवर्धन जी ने 25 सितंबर, 2018 को किया था।
राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई) तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक प्रणाली पर कार्य कर रहे हैं। इस प्रणाली का नाम है – वायु संवर्धन और शोधन इकाई (डब्ल्यूएवाईयू)। इसका उद्देश्य दिल्ली के यातायात चौराहों पर वायु की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है। यह आरएंडडी परियोजना का हिस्सा है जिसे डीएसटी ने वित्त पोषित किया है। वायु को स्वच्छ बनाने के लिए दो इकाइयां लगाई गयी हैं – एक आईटीओ चौराहे पर और दूसरी मुकरबा चौक पर। सीएसआईआर – एनईईआरआई एक नये डिजाइन कार्य कर रही है जिसे डीएसटी सहयोग प्रदान कर रहा है। सूक्ष्म कणों के साथ ही यह उपकरण हवा में तैरते कार्बनिक यौगिक (वीओसी); कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों को भी कम करेगा।
यह उपकरण मूल रूप से दो सिद्धांतों पर काम करता है – वायु प्रदूषकों को कम करने के लिए वायु उत्पादन तथा सक्रिय प्रदूषकों को हटाना। सूक्ष्म कणों को हटाने के लिए उपकरण में फिल्टर लगे हैं तथा वीओसी और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों को हटाने के लिए यूवी लैम्प लगाए गए हैं। उपकरण में एक पंखा और फिल्टर लगा है जो सूक्ष्म कणों को अपनी ओर खींचता है और फिर इसे हटा देता है। दो यूवी लैम्प लगाए गए हैं तथा उपकरण में 500 ग्राम सक्रिय कार्बन चारकोल होता है जिसके ऊपर विशिष्ट रसायन हाइटेनियम डाइऑक्साइड का लेप होता है।
इस उपकरण में निम्न गति के पवन जेनरेटर तथा उचित दक्षता के साथ लंबे समय तक उपयोग के लिए उपयुक्त आकार वाले फिल्टरों का उपयोग होता है। कार्बन मोनोऑक्साइड तथा वीओसी समेत हाइड्रोकार्बन को हटाने के लिए उपकरण में एक ऑक्सीजन इकाई होती है। हवा फिल्टरों से होकर गुजरती है जहाँ सूक्ष्म कण हटा दिए जाते हैं। पवन जेनरेटर हवा के विक्षोम (हलचल) को बढ़ाने में मदद करता है। इससे कम करने (मंदन, विलयन) की प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया को प्रकृति की नकल भी कहा जा सकता है। अगले चरण के तहत फिल्टर तथा ऑक्सीजन प्रणाली के उपयोग से प्रदूषकों को हटाया जाता है। हवा का ऑक्सीकरण होता है जहाँ कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, वीओसी, कार्बन डाइऑक्साइड में परिणत हो जाता है। इसके लिए विशिष्ट डिजाइन वाले तथा उचित सतह वाले चैंबर का इस्तेमाल किया जाता है। उपकरण के निकास द्वार पर हवा में कुछ अवशिष्ट वेग होता है। हवा का वेग वायुमंडल में विक्षोम उत्पन्न करता है जो प्रसार प्रक्रिया के द्वारा प्रदूषण सघनता को कम करता है।
यदि उपकरण प्रतिदिन 10 घंटे तक कार्य करता है तो आधी यूनिट बिजली खर्च होती है। उपकरण की लागत 60,000रु. है। संचालन व रख-रखाव की लागत 1500रु. प्रतिमाह है
ट्रैफिक जक्शन वायु प्रदूषण न्यूनीकरण योजना
इस परियोजना का उद्देश्य ट्रैफिक जक्शनों पर प्रदूषण कम करने के लिए वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की क्षमता और प्रभावशीलता को विकसित करना, जांच करना और प्रदर्शित करना है। यह उपकरण मूल रूप से दो सिद्धांतों पर कार्य करता है –
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वायु प्रदूषकों की मात्रा को कम करने के लिए वायु उत्पादन
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सक्रिय प्रदूषकों को हटाना
इस उपकरण में धीमी गति वाले वायु जेनरेटरों का उपयोग किया जाता है। उचित आकार के तथा लम्बी अवधि तक चलने वाले फिल्टर लगे होते हैं। इसमें एक ऑक्सीकरण इकाई होती है जो कार्बन मोनोऑक्साइड तथा वीओसी समेत हाइड्रोकार्बन को खत्म कर देती है।
इस परियोजना के तहत वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण के 5 डिजाइनों का उपयोग किया जाएगा। इन उपकरणों का प्रदर्शन और इनकी क्षमता बेहतर है। इन उपकरणों की कार्यक्षमता और प्रदर्शन का अध्ययन भी किया जाएगा। इसके लिए कंप्यूटर आधारित मॉडलों का उपयोग किया जाएगा तथा ट्रैफिक जंक्शनों पर प्रदूषकों के उत्सर्जन, फैलाव और संकेंद्रण पर जानकारी प्राप्त की जाएगी। इन उपकरणों की बंद कमरे में जांच की जाएगी ताकि इनके प्रभावी होने से संबंधित दक्षता का मूल्यांकन किया जा सके। क्षेत्र परीक्षण के तहत ट्रैफिक जंक्शनों का चयन किया जाएगा और उपकरण लगाने से पहले वर्तमान वायु गुणवत्ता का अध्ययन किया जाएगा। इन अध्ययनों से प्राप्त डेटा के आधार पर मॉडल को ध्यान में रखते हुए अध्ययन किया जाएगा। इसके बाद यह निश्चित किया जाएगा कि नई दिल्ली के चयनित ट्रैफिक जंक्शनों के लिए उपकरणों में कौन सी सामग्री का उपयोग होना चाहिए, ताकि फिल्टर की दक्षता को बेहतर बनाया जा सके; कौन से अवशोषकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि वीओसी को हटाया जा सके आदि। इसके आधार पर उपकरण की डिजाइन को अंतिम रुप दिया जाएगा। उपकरण को लगाने के बाद इनके प्रदर्शन की नियमित निगरानी की जाएगी और इनका मूल्यांकन किया जाएगा। अध्ययन के आधार पर एक विस्तृत योजना तैयार की जाएगी जिसके अर्न्तगत ट्रैफिक जंक्शनों पर वायु की गुणवत्ता के प्रबंधन के लिए सुझाव दिये जाएंगे।
एकीकृत कार्ययोजना के माध्यम से लैंडफिल अग्नि नियंत्रण व्यवस्था
भारत में लैंडफिल अपशिष्ट के निपटान के लिए अंतिम स्थल है। भारत में अधिकांश लैंडफिलों में विज्ञान और इंजीनियरिंग के नियमों की अनदेखी की गई है। इन लैंडफिलों में गैस संग्रह करने की और जहरीले द्रव मिट्टी में मिलने से रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है। भारत में लैंडफिल में होने वाली आग की घटनाओं की रिपोर्ट नहीं की जाती है। आग लगने के कारण और इसके समाधान से संबंधित कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। रिपोर्ट किए गए मामलों में अधिकांश मानवीय गलती और अपशिष्ट प्रबंधन के गलत तरीकों को कारण माना जाता ह। कचरे को खुले में जलाना और लैंडफिल में लगी आग भारत के शहरों में वायु प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोत हैं। सिर्फ मुंबई शहर में लैंडफिल आग प्रतिवर्ष 22,000 टन प्रदूषकों का उत्सर्जन करती है। (चित्र 15) । इन प्रदूषकों में कार्बन मोनो ऑक्साइड (सीओ), हाइड्रोकार्बन (एचसी), सूक्ष्म कण (पीएम) , नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स), सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) और डाइऑक्सिन / फ्यूरन्स की 10,000 टीइक्यू की अनुमानित मात्रा होती है। (आर.के.अनेप्पू, 2012)
इन तथ्यों के मद्देनजर, एक डंपसाइट / लैंडफिल में आग के कारण, स्रोत, प्रकार और प्रभावों को समझना और इसके उचित नियंत्रण के लिए एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करना बहुत महत्वपूर्ण है।
उद्देश्य
- एस एस डब्ल्यू की विशेषताओं को समझने तथा सतह व उप-सतह की आग की प्रक्रिया की समझ विकसित करने के लिए प्रयोगशाला में सुविधाओं का विकास और लैंडफिल में प्रयोग संबंधी सुविधाओं का विकास
- लैंडफिल में आग के प्रसार को समझने के लिए प्रायोगिक अध्ययन
- भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रकार की आग के शमन पर प्रायोगिक अध्ययन।
- लैंडफिल-आग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए दिशानिर्देश तैयार करना।
शुद्ध वायु : वायु प्रदूषण का पता लगाने और प्रदूषण कम करने के लिए एक विद्युत कक्ष
प्रस्तावित परियोजना के दो चरण हैं। पहले चरण में विद्युत कक्ष के प्राथमिक रुप (प्रोटोटाइप) को डिजाइन किया जाएगा। प्रस्तावित प्राथमिक डिजाइन में शुद्धिकरण प्रक्रिया के तीन चरण होंगे। पहले चरण में बड़े कणों को धातु की जाली या अन्य सर्वोत्तम उपायों द्वारा हटाया जाएगा। दूसरे चरण में 5 माइक्रो मीटर व्यास वाले फाइबर फिल्टर की मदद से पीएम10 कणों को हटाया जाएगा। तीसरे चरण के अर्न्तगत पीएम 2.5 कणों को कागज से बने 2 माइक्रोमीटर वाले रंडफिल्टर की सहायता से हटाया जाएगा। प्रदूषण कम करने के उपकरण की दीवारों पर सिलिका का लेप होगा ताकि हवा की नमी को समाप्त किया जा सके। यह उपकरण बाहरी स्रोत की बिजली के साथ-साथ उपकरण में लगे सौर पैनलों से उत्पादित बिजली से भी संचालित किया जा सकेगा। इस प्रणाली की ऊर्जा आवश्यकता को 250 वाट सौर पैनल के साथ 24 वोल्ट इनपुट से पूरी हो जाएगी। प्रारंभिक परिणाम उत्साहवर्धक हैं और इसी पूरी तरह से तैयार शुद्ध वायु : विद्युत कक्ष में पीएम 2.5 और पीएम10 कणों को हटाने की दक्षता का प्रतिशत 88 से 90 तक रहने की उम्मीद है। परियोजना के तहत विद्युत कक्ष की दक्षता, परिचालन लागत और प्रभाव क्षेत्र के आकलन के लिए परीक्षण किये जाएंगे। पहले चरण के परिणाम के आधार पर कई विद्युत कक्ष निर्मित किये जाएंगे और दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर लगाए जाएंगे। यह इस परियोजना का दूसरा चरण होगा। इन पायलट विद्युतकक्षों की दक्षता का वास्तविक समय पर परीक्षण किया जाएगा। इसके लिए एकीकृत वायु गुणवत्ता सेंसर प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाएगा जिसे इस परियोजना के तहत ही निर्मित किया जाएगा और मंजूरी दी जाएगी।
उद्देश्य
- क्षेत्र के आकलन और सीएफडी विश्लेषण के आधार पर प्रदूषण कम करने वाले कक्ष का प्राथमिक डिजाइन बनाना
- प्रदूषण कम करने वाले कक्ष के प्राथमिक डिजाइन का निर्माण
- एकीकृत वायु गुणवत्ता सेंसर प्लेटफॉर्म का निर्माण करना तथा मान्यता देना
- वायु में प्रदूषकों की सांद्रता कम करने में प्राथमिक डिजाइन वाले उपकरण में प्रभाव का आकलन
- शमन कक्ष (प्रदूषण कम करने वाला कक्ष) के परिचालन व्यय का आकलन
- सीएफडी विश्लेषण का उपयोग करते हुए शमन कक्ष के प्रभाव-क्षेत्र का आकलन
- पायलट इकाइयों का निर्माण और नई दिल्ली के विभिन्न स्थलों पर इकाइयों का वास्तविक समय के अनुसार परीक्षण
एक चलती हुई कार के ऊपर रखे फिल्टर का उपयोग करके वायु में उपस्थित सूक्ष्म कणों का संग्रह
प्रस्तावित परियोजना को दो चरणों में बाँटा गया है। पहले चरण में शुद्ध वायु एलएलसी द्वारा डिजाइन किये गएशुद्ध करने वाली इकाई के प्रदर्शन का आकलन किया जाएगा। यह सीएफडी विश्लेषण कार की परिचालन स्थिति, मौसम की स्थिति, कार का मॉडल आदि विभिन्न स्थितियों के आदार पर किया जाएगा। इस प्रोटोटाइप में शुद्धिकरण प्रक्रिया के तीन कारण हैं। पहले चरण के तहत धातु की जाली का उपयोग करके बड़े कणों को हटाया जाएगा। दूसरे और तीसरे चरण में क्रमशः फोम और एचईपीए फिल्टरों का उपयोग किया जाएगा।
इस प्रणाली का प्रमुख लाभ दबाव अंतर का सिद्दांत है जो एक चलते हुए वाहन के द्वारा उत्पन्न वायु प्रवाह से निर्मित होता है। शुद्ध वायु एलएलसी द्वारा किये गए क्षेत्र-परीक्षणों के परिणाम उत्साहवर्धक हैं। परियोजना के तहत वर्तमान फिल्टरों तथा सीएफडी संयोजन वाले संशोधित फिल्टरों की दक्षता का भी परीक्षण किया जाएगा। इसके अलावा एक सेंसर संयोजन प्रणाली का डिजाइन तैयार किया जाएगा और इसका निर्माण किया जाएगा जिसे कार की छत पर लगाया जा सकता हो। इससे वास्तविक समय पर वायु में उपस्थित प्रदूषकों की सांद्रता का आकलन किया जाएगा। इस प्रकार के सेंसर संयोजन प्रणाली से किसी शङर के वास्तविक समय पर वायु की गुणवत्ता की जांच करने में सहायता मिलेगी। इस डिजाइन में एचईपीए फिल्टरों का उपयोग किया जाता है जिसे न तो साफ किया जा सकता है और न ही पुनः उत्पादित किया जा सकता है। बड़ी मात्रा में इस प्रकार के फिल्टरों के उपयोग से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या सामने आएगी। इसलिए इस परियोजना का एक मुख्य उद्देश्य है – एक किफायती और साफ किये जाने लायक फिल्टर को विकसित करना जिसमें अच्छी दक्षता भी हो।
उद्देश्य
- क्षेत्र आधारित आकलन और सीएफडी विश्लेषण के आधार पर वर्तमान के शुद्ध वायु एलएलसी डिजाइन के प्रदर्शन का मूल्यांकन
- सीएफडी विश्लेषण का उपयोग करते हुए कार के विभिन्न मॉडलों के लिए वायु शोधक डिजाइन करना
- एकीकृत वायु गुणवत्ता सेंसर संयोजन प्लेटफॉर्म का डिजाइन तैयार करना और इसका निर्माण करना
- एक किफायती और कार्यकुशल फिल्टर का निर्माण जिसे साफ किया जा सकता हो और जो एचईपीए फिल्टर का स्थान ले सके।
वास्तविक समय पर नदी – जल और वायु गुणवत्ता निगरानी
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और इंटेल, “वास्तविक समय पर नदी-जल और वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए डीएसटी इंटेल सहयोग शोध” के लिए परस्पर सहयोग की शुरुआत कर रहे हैं। इस पहल का उद्देश्य बड़े पैमाने पर संग्रह किये गए आंकड़ों के संयोजन, संचार और विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण तकनीकों को विकसित करना है। इन आंकड़ों का संग्रह निरंतर / लंबे समय तक चलने वाले सेंसर नोड्स के स्वायत्त नेटवर्क के माध्यम से किया जाएगा। इसके बाद जल और वायु गुणवत्ता की वास्तविक समय पर निगरानी के लिए इन्हें एकीकृत किया जाएगा। इस कार्यक्रम का संचालन द्विपक्षीय संस्था करेगी। इस संस्था का नाम है – भारत-यू.एस. विज्ञान और प्रौद्योगिकी फोरम।
इस शोध / अनुसंधान कार्यक्रम का उद्देश्य है – एक किफायती, कम शक्ति वाले स्वायत्त वायरलेस सेंसर नेटवर्क को विकसित करना और इन सेंसरों की तैनाती। इनके उपयोग से बड़े भौगोलिक क्षेत्र (नगर, नदी, जल विभाजक आदि) के विभिन्न महत्वपूर्ण जल व वायु गुणवत्ता कारकों के बारे में सूक्ष्म दृष्टिकोण प्राप्त होगा।
इन ऑनलाइन सेंसरों से जल व वायु गुणवत्ता की वर्तमान स्थिति का पता चलेगा। वास्तविक समय पर प्राप्त आंकड़ों के आधार पर उन उपायों/हस्तक्षेपों के प्रभाव का आकलन किया जा सकेगा जिनका उपयोग प्रदूषण को कम / समाप्त करने के लिए किया गया है।